ठिकाना मादड़ी (भोमट) के सारांगदेवोत
मादड़ी गांव खैरवााड़ा के उत्तर - पूर्व में तीस मील दूरी पर बसा हुआ है । भोमट के राजपूत ठिकानों में से मादड़ी भी एक है । इसके ठिकानेदार सारंगदेवोत सिसोदिया है , जो मेवाड़ राज्य के बड़े ठिकाने कानोड़ के अधिपति सिसोदिया सारंगदेवोत परिवार से निकले थे । मेवाड़ के महाराणा लाखा ( 1382-1421 ई . ) के दूसरे बेटे अजा का पुत्र सारंगदेव को कानोड़ का ठिकाना मिला था । उसके वंशज सारंगदेवोत कहलाये ।
सारंगदेव का पुत्र जोगा हुआ । जो 1527 ई . की खानवा की लड़ाई में बाबर के खिलाफ मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह की ओर से लड़ते हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुऐ । उनका उत्तराधिकारी नरबद हुआ । उनका पुत्र नेतसिंह 1576 ई . की हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ते हुए काम आये । नेतसिंह का पुत्र भाणसिंह बांसवाड़ा और डूंगरपूर की सेना के विरुद्ध मेवाड़ की सेना की ओर से सोम नदी के किनारे हुई लड़ाई में घायल हुआ ।
मालदेव को भोमट में मादड़ी ठिकाने की स्थापना करने वाला माना जाता है । वह सम्भवतः नेतसिंह का छोटा भाई था , जो अपना अलग ठिकाना कायम करने के लिये कानोड़ से निकल गया । ऐसा माना जाता है कि मालदेव ने 1548 ई . के लगभग मादड़ी में अपना वर्चस्व कायम किया । ठिकाना मादड़ी के प्राचीन महलो का भाग 1851 ई . में मालदेव के वंश में रघुनाथसिंह मादड़ी में उसका उत्तराधिकारी हुआ , उस समय उसकी आयु 15 वर्ष की थी ।
उसके काल में भीलों ने ठिकाने की ज्यादतियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया । अप्रेल 1882 ई . में अंग्रेज सरकार की ओर से कर्नल कोनोली ने आकर उसके पुत्र बख्तावरसिंह की मदद से रावत और भीलों के बीच समझौता करवा कर शांति कायम की । 1900 ई . में बख्तावरसिंह मादड़ी का उत्तराधिकारी हुआ । उसने पहाड़ा के चौहान ठिकानेदार के चाचा जोरावरसिंह की पुत्री के साथ विवाह किया था ।
5 मार्च , 1911 ई . के दिन उनका निसंतान देहान्त हुआ । उसका छोटा भाई रणजीतसिंह गोद आकर मादड़ी का उत्तराधिकारी हुआ । उनका विवाह धामोत के ठाकुर गुलाबसिंह की कन्या से 1910 ई . में हुआ था । रणजीतसिंह का देहान्त 17 जनवरी , 1922 ई . को हुआ । रणजीतसिंह बारह वर्ष की अल्पायु में मादड़ी में उत्तराधिकारी हुऐ थे । रणजीतसिंह के निसंतान थे उसके भाई प्रतापसिंह के बड़े बेटे दौलतसिंह को गोद लिया गया था ।
एक वर्ष बाद 19 जनवरी , 1923 ई . को उसकी गद्दीनशीनी सम्पन्न हुई । दौलतसिंह का पहला विवाह (राणा पूंजा के वंशज) *"पानरवा के राणा अर्जुनसिंह सोलंकी की पुत्री नंदकंवर के साथ फरवरी , 1928 ई . में हुआ "। दूसरा विवाह कुंड के लाम्बा ( अजमेर ) के जगमालोत राठोड़ ठाकुर की कन्या से हुआ था । रावत दौलतसिंह ने उदयपुर में भोपाल नोबल्स स्कूल में शिक्षा प्राप्त की थी । मादड़ी ठिकाने में कुल 9 गांव थे ।
ठिकाने की वार्षिक आय 7345 रुपये मानी गई , जिस पर ठिकाने की ओर से दसूंद कर के लिये 501 रूपया वार्षिक राज्य को दिया जाता था । ठिकाने में 14 हथियारबंद सिपाही रखने का नियम था । 1930 ई . के बाद मादड़ी ठिकाना भी मेवाड़ के महाराणा के अधीन हो गया । ठिकानेदार की पद - प्रतिष्ठा की दृष्टि से महाराणा ने टिकानेदार को अपने दरबार में सामने की बैठक , रावत की पदवी , दरीखाने का बीड़ा और पांव में सोना पहिनने के स्वत्व प्रदान किये ।
मादड़ी के ठिकानेदारों को राज्य की ओर से तृतीय श्रेणी के मजिस्टेट के बराबर ज्यूडिशियल अधिकार दिये गये थे । तदनुसार उसको 1000 रुपये तक की मिल्कियत के दीवानी मामले तय करने का अधिकार तथा फौजदारी मामलों में अपराधियों को छ : माह तक की सजा देने और 100 रुपये तक का जुर्माना करने के अधिकार प्राप्त थे । दौलतसिंह का पुत्र गोवर्धनसिंह उसका उत्तराधिकारी हुआ ,
जिसका विवाह मेरपुर के रावत शिवसिंह की पुत्री के साथ हुआ । दौलतसिंह की पुत्री का विवाह बेटमा ( मध्य प्रदेश ) के सांचोरा चौहान ठा . पुरुषोत्तमसिंह के साथ हुआ । रावत गोवर्धनसिंह ने भूपाल नोबल्स कालेज से स्नातक की उपाधि ली । वह कुछ काल तक झाड़ोल के प्रधान के पद पर रहा ।
गोवर्धनसिंह ने ठिकाने के पुराने महलों से , जो जीर्ण - शीर्ण हो गये थे , बाहर अन्य जगह पर ठिकाने के नये भवनों का निर्माण कराया । उसका कामदार नेगड़िया का चतरसिंह था । गोवर्धनसिंह के देहान्त के बाद उनका पुत्र पृथ्वीभूपेन्द्रसिंह ( वर्तमान ) उनका उत्तराधिकारी हुऐ । उनका विवाह बिरदोल ( शाहपुरा ) के राजावत ठा . भेरुसिंह की पुत्री हंसराजकंवर से हुआ ।
भोमट (मेवाड़) का ईतिहास