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history of Kishangarh fort Jaisalmer

 राजाओं की शान और शूरवीरता का प्रतीक #किशनगढ़_का_किला (जैसलमेर)



यह किला हूबहू पाकिस्तान के बहावलपुर में मौजूद देरावर किले जैसा नज़र आता है॥ 

 

1965 ई के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने इसी किले पर हमला बोला था। जिसके बाद भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए वापस खदेड़ दिया था। 

- इस किले को हासिल करने के लिए मुगल शासकों ने काफी प्रयास किये थे लेकिन नाकाम रहे । किला मजबूती के साथ-साथ सुंदरता को भी ध्यान में रखकर बनाया गया था। 


- इस दुर्ग में 8 से अधिक बुर्ज बने हैं। ये दुर्ग को मजबूती, सुंदरता व सामरिक महत्व प्रदान करते थे।

 

- आजादी के बाद जैसलमेर रियासत के समय पाकिस्तान के लड़ाके हूर्रो का काफी आंतक किशनगढ़ में रहा। जिससे इसे काफी नुकसान पहुंचा था।


1965 ई के भारत पाक युद्ध में इस किले को खासा नुकसान पहुंचा था। इस किले में देवी की बड़ी-बड़ी प्राचीन मूर्तियां भी है। जैसलमेर के किले जहां पत्थरों से निर्मित है। वहीं, किशनगढ़ का किला पूर्ण रूप से ईंटों से बना है।


 जैसलमेर के सोनार किले के साथ ही यह किला भी है जो अपनी सार संभाल के अभाव में जर्जर सा होता जा रहा है॥ मुगल और सिंध शैली का नायाब नमूना यह किला जैसलमेर जिला मुख्यालय से पकिस्तान सीमा की तरफ 145 KM दूर स्थित है॥ सीमा पर बने होने के कारण सुरक्षा के लिहाज से इस किले पर पर्यटकों के आने की पाबंदी लगी हुई है और यही वजह है कि देखरेख के अभाव में यह किला दम तोड़ता नजर आ रहा है॥


इतिहास के अनुसार भागलपुर पाकिस्तान की सीमा के नजदीक जैसलमेर के प्राचीन किशनगढ़ परगने का मार्ग देरावल और मुल्तान की ओर से जाता था॥ बंटवारे से पहले और रियासत काल में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिये इसी रास्ते से होकर जाना पड़ता था॥ ऐसे में सीमा पर बना यह किला ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था॥ 


इस किले का निर्माण दीनू खां ने करवाया था॥ जिसके वजह से इसका प्रारम्भिक नाम दीनगढ़ था॥ इतिहासकार बताते हैं कि #महारावल_मूलराज द्वितीय ने दुर्ग को हस्तगत करने के लिए सेना भेजी थी॥ समझोते के अनुसार 50,000 रुपये में दुर्ग खरीद लिया ॥ वहाँ जैसलमेर का थाना स्थापित कर कुलदेवता लक्ष्मीनारायण का मंदिर बनवाया॥ इसका नाम बदल कर #कृष्णगढ़ रखा गया था॥ जिसे आज #किशनगढ़ के नाम से जाना जाता है॥ 


यह किला वास्तुशिल्प संरचना का अद्भुत नमूना है॥ इस किले का निर्माण पक्की इंटों से करवाया गया है और इसमें दो मंजिलें बनी हुई है॥ किले में मस्जिद, महल और पानी का कुआ भी बना हुआ है॥ मुगल और सिंध शैली के मिश्रण से बना यह किला अपनी निर्माण तकनीक में बेजोड़ है॥ यही कारण है कि आज भी उपेक्षा का दंश झेलने के बावजूद यह डटा खड़ा है॥ जानकारों की माने तो इस किले के निर्माण के समय इसमें बने खुफिया दरवाजे इसकी विशेषता रहे है ताकि युद्ध के समय दुश्मनों को चकमा दिया जा सके॥


 साल 1965 ई और 71 ई के युद्धों में जब पाक सेना भारतीय सीमा में प्रवेश कर कर काफी आगे आ गई थी, तब इस किले में घुसे सैनिकों (मुजाहिद) यहीं पर भ्रमित हो कर रह गये थे और आगे नहीं बढ पाये थे॥ सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी यह किला आज उपेक्षा का दंश झेलता जर्जर होने को विवश है॥


 सीमा सुरक्षा बल ने किशनगढ़ के पास सैन्य चौकी का निर्माण किया है जहां पर सैकड़ों सैनिक रहते हैं॥ 


यह किला दिन-ब-दिन अपना स्वरूप खोता जा रहा है ॥

 आगामी दिनों में अगर इस किले की ओर गंभीरता पूर्वक नजर नहीं डाली गई तो जमींदोज होता यह किला इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जायेगा॥ 


कागजों की अगर बात करें तो जैसलमेर के इस सरहदी किले किशनगढ़ को संरक्षित स्मारक बनाया गया है॥ लेकिन जगह-जगह से ढही इसकी दीवारें, अपनी जगह छोड़ती ईंटे, उपेक्षा का दंश झेलती इसकी बुर्जियां, कक्ष और प्राचीर को देखने से यह कहीं भी नहीं लगता है कि इस किले का किसी भी रूप में संरक्षण हो रहा है॥ बदहाली का यह सूरते हाल देख कर अपने आप ही स्पष्ट हो रहा है कि लंबे समय से इस किले की सुंध नहीं ली गई है॥ ऐसे में बदहाली का दंश झेल रहा यह किला किसी भी समय ढह जायेगा॥


 गौरतलब है कि कला साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग की ओर से जैसलमेर के आस पास बने #घोटारू, #गणेशिया और #किशनगढ़ किले को भी संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिये इसका निरीक्षण कर इसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिये एक दल भी आया था॥ इसमें पुरातत्व अधीक्षक सहित जैसलमेर संग्रहालय अध्यक्ष भी शामिल थे॥ इस निरीक्षण दल की तरफ से बनाई गई रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने अधिसूचना जारी कर आपत्तियां मांगी गई थी॥ आपत्तियां नहीं मिलने की स्थिति में कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने राजस्थान स्मारक पुरावशेष स्थान और प्राचीन वस्तु अधिनियम 1961 के तहत राज्य सरकार की ओर से घोटारू, गणेशिया और किशनगढ़ किले को संरक्षित स्मारक घोषित करने की घोषणा 22 नवम्बर 2011 ई  में जारी कर दी गई थी॥ संरक्षित स्मारक घोषित होने के बाद यहां के लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब इस किले के दिन बदलने वाले हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं॥ सरकारी उपेक्षा के चलते संरक्षित स्मारक होने के बाद भी इस किले की किस्मत संवर नहीं पाई है॥ यह गढ़ अपनी बदहाली पर आज भी आसूं बहा रहा है॥

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